गुरुवार, 28 मई 2020

विश्व भूख दिवस world Hunger Day

विश्व भूख दिवस



भूख   अभिशाप   है ,निर्धनों   के   लिए | 
शोषितो    बंचितो  , निर्बलो    के  लिए || 

सब दुःखो का ये कारण, है उनके  लिए | 
हा नहीं  है निवारण, कुछ  उनके  लिए || 

भूख   के  लिए ,दर -दर  भटकता  रहा | 
शहर  दर  शहर  खुद ,को घिसता रहा || 

क्षुब्ध   पीड़ा   लिए  , मन  से  मरता रहा | 
आत्मा   जीवन  को, अपने  कोसता रहा || 

क्षुधा पूर्ति  को  जग से, वो  जूझता   रहा | 
वो  गिरता   मचलता  , सिसकता   रहा || 

रक्त   अश्रु    बने   , उसको  पीता रहा | 
खुद की    हस्ती ,  बनाता मिटाता रहा || 

दाना -दाना   वो, दिन भर  जुटाता  रहा | 
निज  उदर  अग्नि को, वह बुझाता  रहा || 

जिसके  लिए  जरूरी ,कुछ न संसार में | 
एक  रोटी  है सब  कुछ ,इस  ब्रमांड में || 

और  कुछ भी अधिक, ना समझाता है वो | 
एक   रोटी  के लिए, प्रयत्न   करता है वो || 

आओ  हम भी करे, इस अनुभव को सहन | 
छोड़े थोड़ा सा हिस्सा, करे भूख को वहन  || 

तो  करो   कुछ न्योछावर, अन्न उनके लिए | 
देगी  आत्मा   दुआ  , इस    भले   के लिए || 

खिल उठेगा जब भी , उनका निज अंतर्मन | 
फिर करेंगे जगत को, वो पुनि -पुनि  नमन || 

होगा    विश्वाश    गहरा , जीवन  जगत पर | 
चल उठेंगे  ख़ुशी से, वे निर्माण  के पथ पर || 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 



मंगलवार, 26 मई 2020

विद्यालय की यादें

विद्यालय की यादें 


रुखा    सूखा  ,जो   मिलता   था | 
खा   कर   स्कूल ,  को  जाते थे || 

घर  से  हम ,टाट  की   पट्टी को | 
लेकर     विद्यालय       जाते   थे || 

पत्ते   तिनके , कागज़  के टुकड़े | 
मिलजुलकर ,  सभी   उठाते  थे || 

कुछ इस   तरह से ,साफ सफाई | 
निज   विद्यालय   ,की   करते  थे || 

क्योकि    अपने   ,विद्यालय   को | 
हम   विद्या मंदिर ,ही समझते थे | 

गुरुजन  सहपाठी, मित्र सभी को| 
आदर   सप्रेम , नित्   करते   थे || 

गुरुजन को ,प्यास लगे   यदि तो | 
हम   पानी ,उन्हें   पिलाते      थे || 

होता था निज गौरव का एहसास | 
इस   सेवा   भाव , को  करने में || 

आशीष   सदा  , मिलता  हमको | 
इस    पुण्य कर्म ,को करने में  || 

गुरु   शिष्य    के  , बीच    सदा | 
आदर   की   , भावना  होती थी || 

हम   छात्र   देते  ,सम्मान  सदा  | 
स्नेह        गुरु    जी   , देते     थे || 

जो   शिक्षा   सबक, सिखाया था | 
वह   आज   ,स्मरण   है  हमको || 

कुछ   बातें   आज, समझ आती | 
जो  नहीं   उस समय ,थे  समझे || 

गर    कभी  , दंड   वह    देते  थे | 
हम   घर   पर  ,नहीं    बताते थे ||  

अटूट विस्वाशअभिभावक रखते | 
इस लिए   झिझक, हम  जाते थे || 

कुछ   इस  प्रकार, से गलती को |
अपने   हम     सदा, छुपाते    थे || 

निज   मन  में  प्रण , फिर लेते थे | 
और  फिर   न ,उसे  दोहराते थे ||  

है आज भी अंकित ,अंतर्मन पर | 
सारे    गुरुजन  , की   सब यादें || 

है   शीश   सदा ,झुक जाते जब | 
आते   है  याद ,निस्वार्थ     वादे || 

पर आज   शिक्षा, को देख देख | 
मन  में यह  प्रश्न,   उमड़ते   है || 

अब   न   तो ,शिक्षक     वैसे है | 
न   शिष्य ही , वैसे   मिलते  है || 

पर   हमें सदा ,  अपनी परंपरा | 
को       जीवित   , रखना     है || 

गुरुशिष्यके उस,अमिट  स्नेह को | 
फिर      जिन्दा  ,     करना     है || 
फिर     जिन्दा   , करना     है ..... 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 






रविवार, 17 मई 2020

सरस्वती वंदना

सरस्वती  वंदना 


मात        हे   सरस्वती | 
धवल      वस्त्र   धारणी|| 

स्वेत      कमल  आसन | 
पर सदा तुम विराजती || 

शुभ्र        हंस     वाहन | 
कर     माला  सवारती || 

वीणा     वाद्य कर सोहे | 
राग   सुर      प्रदायिनी || 

सकल    देव       करते | 
नित्  वन्दना    तुम्हारी || 

सदा    हो   सहाय  तुम | 
सभी  को  हो  उबारती || 

ज्ञान   बुद्धि  सत्य न्याय | 
सर्वदा   तुम्हारे     पास || 

जिह्वा     पर   बैठ  सदा |
बोध    तुम   कराती हो || 

दे    कर   के   ज्ञान दान | 
अज्ञानी   को उबारती हो || 

कालिदास   को महाकवि | 
कालिदास    बनाती    हो || 

मुझ    अबोध   प्राणी को | 
दे   कर   आशीष   ज्ञान || 

बुद्धि    को     सवार   दो | 
जीवन        सुधार      दो || 
करता   माँ           विनती | 

मै     तुमसे    बार -बार || 
इस    जटिल    जगत से | 

मुझको     उबार       दो || 
मात    हे सरवस्ती। .......  


_ सन्तोष कुमार तिवारी 


शुक्रवार, 15 मई 2020

परिवार Family

परिवार  


परिवार   सदा  , बनता   फलता | 
दिल    से    दिल ,जुड़  जाने पर || 

विश्वास    त्याग    ,ममता   संतोष | 
सबके   हृदयो,   में   आने     पर || 

होती   अदृश्य , डोर   से     बँधी  | 
परिवार    सदस्यों   , के  सम्बन्ध || 

बांधे   रखती    ,सबको      सर्वथा | 
प्रेम    कुसुम   ,की   यह    सुगंध || 

घर   का   मुखिया ,सिंचित  करता | 
जड़  पत्ती   -पत्ती    ,डाली    -डाली 

देता    सिंचित   , करने    में   बहा | 
वह    खून   पसीना   ,कर  खाली || 

थाली      में    सबके  , हो    भोजन 
इसका  प्रबंध    ,वह    करता   है || 

निज  सुख इच्छा ,का करके त्याग | 
परिवार    के  , लिए    जूझता   है || 

सो करो सम्मान,घर के मुखिया का | 
दो    आदर   और, सत्कार अपना || 

परिवार   को ,रखो   खुश     अपने | 
दो   सदा -सदा,   योगदान अपना || 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 



मंगलवार, 12 मई 2020

नेता पर कविता poem on political leader

नेता पर कविता 


ऐ        देश     के    भावी    नेता | 
तुम        करो     अच्छा   काम || 

घोटाला    और  हवाला   करके | 
देश   को करो  ना तुम बदनाम || 

सोच  समझ कर कदम उठाओ | 
बदनामी      से    देश   बचाओ || 

लूट  -लूट  कर देश का तुम धन | 
इस    प्रकार    मत         खाओ || 

कितनी       क्रांति     के      बाद | 
हमको       मिली  है ये आजादी || 

देश  का  तुम  नुकसान   ना करो | 
करो   ना    तुम    इसकी बर्बादी || 

देश     को   इस  प्रकार मत बेचो | 
तुम          दुश्मनो        के    हाथ || 

स्वदेश        पर     मरना     सीखो | 
धन    के   लिए   ना   पीटो   माथ || 

तन  -मन -धन से   तुम जुट जाओ | 
देश   के    लिए   करो   तुम काम || 

इतना    राष्ट्र   को    धनी    बनाओ | 
जग   में   कर   दो   देश   का नाम || 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 



शनिवार, 9 मई 2020

कर्म पर कविता Kavita on Karm

कर्म पर कविता 


हाँ    ब्रह्म   देव ,  ही   सृजन   करें | 
करें       विष्णु   ,  प्रभु      पालन || 

शिवा      शिवम्  ,     संहार    करें | 
सृष्टि      को   ,   रखते      कायम || 

करते त्रिदेव  , नित् अपना   कर्म | 
संसार       के    ,वे      संचालक || 

विद्या     देती     , है      सरस्वती | 
लक्ष्मी         ऐश्वर्य  ,      प्रदायक || 

करें    उदर   ,  क्षुधा   की    पूर्ति | 
अन्नपूर्णा   माँ  ,   है       सहायक || 

जल   जीवन   ,सबको     देने का | 
वरुण     देव   का,  है  अधिकार || 

मानते    जगत ,  के   जीव    जंतु | 
सब    उनका,   ये         उपकार || 

सब अन्य   देव  ,  गण  भी करते | 
अपने         कर्तव्य   ,    निर्वहन || 

फिर    हम    तो ,  है  मनुष्य मात्र | 
क्यों           घबराता ,      अंतर्मन || 

निज    कर्म    को  , धर्म मानकर | 
आगे       को   , बढ़ते        रहिये || 

भगवान      प्रभु   ,का सदा भजन | 
अन्तरमन    में   ,भजते      रहिये || 

बस  सत्य यही ,सिद्धांत जगत का | 
इसी   का   सदा, करो तुम ध्यान || 

नित्य   ,निरंतर   ,शुभ   कर्म करो  | 
बस    इसी  में ,छुपा विश्वकल्याण || 
बस     इसी  में, छुपा विश्वकल्याण ||


_ सन्तोष कुमार तिवारी 




शुक्रवार, 8 मई 2020

Mothers day poems in hindi मदर्स डे कविता हिंदी में

मदर्स  डे कविता हिंदी में 



माँ    जननी    है    ,जगदम्बा    है | 
बच्चो   के   लिए   ,वह   गंगा   है || 

संतान   की  , प्रथम   गुरु  वह है | 
गुरु   से  ऊपर ,स्थान है उसका || 

रखती   करुणा  , ममता   समता | 
बच्चों को  समर्पित ,प्राण  सर्वथा || 

थकती  ना  कभी , निज  कर्मो से | 
बच्चों   का  है ,रखती  ध्यान सदा || 

देती   है   निवाला   ,त्याग  अपना | 
रखती ऊपर  ,संतति   हित  सदा || 

लालन    पालन   ,सब   बच्चों   का | 
 नियमित   विधिवत , वह  करती है || 

पर   सब   बच्चों   से , मिलकर भी | 
जब  इकलौती   ,माँ  ना  पलती है || 

उस    वक़्त   रोष  ,मन  में होता है | 
झुँझलाहट     तन   , में     होती   है ||

हैं   किस  समाज, का  हिस्सा हम | 
बस   प्रश्न   कौंध , फिर  उठते  है || 

माता    को   प्रभु  ,का    दर्जा   दो | 
माता     ना    ,कुमाता    होती   है || 

चरणों     में   स्वर्ग   ,सदा   उसके  | 
विद्या   सुख   ,सम्पति     देती   है || 

सो     करो     ,वंदना     माता   की | 
त्यागों   अभिमान   ,स्वार्थ   अपना || 

गर   करोगे   ,सदा     मातृ     सेवा | 
पूरा   होगा     हर   ,एक     सपना || 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 












बुधवार, 6 मई 2020

भ्रूण हत्या पर कविता Female Foeticide Poem

भ्रूण हत्या पर  कविता 


ओं   माँ   रखती    है   भ्रूण उदर में   ,पूरे   नौ   महीने   तक | 
साहस  ,उत्साह   ,उमंग   रखती  वह   ,पूरे   नौ   महीने तक || 

गर्भस्त   शिशु   है    कौन   ,ये   किंचित   उर   न   सोचती  है | 
बस   एक    सिवा   उसके   ,पूरा     परिवार     शशंकित   है || 

मन   में   सबके ही   प्रश्न   सदा ,इस  बात  के  उठते  रहते है | 
शिशु    है   ये   पुत्र   या   पुत्री ,सब    सदा   सोचते   रहते   है || 

किस   भॉँति  पता  हो  जाये  इसका ,हर  जुगत लगाते रहते है | 
इस   घोर   पाप   के   कर्म   तनिक ,ना  करने  से  वो डरते है || 

पर प्रश्न   यहाँ   ये   उठता   है ,क्यों   पता   लगाने की जल्दी है | 
शायद   तैयारी   हत्या  की  ,यदि  निकल  जाये   की   पुत्री  है || 

अब   बंद     करो     ये   खेल   ,कोख़   में   ताका   झांकी   का | 
जब माँ को किंचित फर्क नहीं,तो होने दो सफल फिर होनी का || 

जो  कर्म  हैं  भाग्यविधाता   का  ,तू  क्यों  कर  उसमे  विघ्न  करें | 
अन्याय  अनीति   अधर्म   पाप  ,क्यों   अपने  ऊपर    वहन करे || 

शिशु  अपना   स्वयं   भाग्य   लेकर   ,इस   पृथ्वी   पर   है आता | 
लड़का    हो   या   हो   लड़की   क्यों   ,व्यर्थ   में   अश्रु   बहाता || 

लड़की   है   आदिशक्ति   रूप   ,क्यों   उससे   द्वेष   तू रखता है | 
पुत्री   साक्षात्   है   लक्ष्मी   रूप ,फिर  क्यों  तू  मन  से  डरता है || 

फिर  क्यों  तू  मन  से  डरता है || 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 



सोमवार, 4 मई 2020

Martyr शहीद

शहीद 

आज         मन          बहुत     खिन्न     है | 
अंतर्मन             छिन्न         -    भिन्न    है || 
अश्रुपूरित    नयन    ,आत्म  उद्विगना   है || 

सुन        वीर   सपूतों  ,के   बलिदान को | 
क्रोध     पीणा    उमड़ता , हृदयस्थान में || 

रोज      सुनता  ,देखता   जवानो का  शव | 
मन  ,रुधिर में कौधती है बिजली सी अब || 

अब   सम्हाले   नहीं   है   सँभलता   ये मन | 
कुछ  करो   ऐसा  हो  जाये इनका   पतन || 

हा ,  पतन   इन  आतंकियों  का हो समूल | 
अब    इन्हे   कर    दो  , जड़   से    निर्मूल || 

खेल   इनका    सदा   के    लिए    बंद   हो | 
फिर   न    सैनिक  ,  परिवार   निर्बंश    हो || 

बस   गुजारिश   है   ,इतनी   सी  सरकार  से | 
रोक   लो     सर्वथा   ,  इस    अनाचार   को || 

हम    समर्पित    खड़े ,  देश    के   संग   में  | 
गर  जरूरत     पड़ी  ,  उतरेंगे     जंग    में ||  

बस     आवाज      देनी ,     है   तुमको    एक|  
दौड़े     आएंगे      वीर  ,  अनगिनत     अनेक || 

पल    में    नामो    निशा,    को     मिटा    देंगे 
जड़    से     आतंकवाद ,   को    निपटा    देंगे || 
जड़     से     आतंकवाद ,    को    निपटा   देंगे || 


_ सन्तोष कुमार तिवारी 



शनिवार, 2 मई 2020

Labour day मजदूर दिवस


मजदूर दिवस 




लेते     सब    जन्म    मनुष्य    बनकर|


फिर    लेबर    नौकर    कहते    सब||


खड़ा     करता     वह    शीश    महल|


जिसको    अपना    घर    कहते   सब||


निज    खून    पसीना    बहा   -   बहा |


वह   चुन  -   चुन    महल   बनाता  है||


फिर    भी   असहाय    आश्रय   विहीन|


वह      गृह     बंचित      कहलाता    है||


आश्रय     घर      रोटी      कपड़ा      हो|


इन     शोषित     बंचित     मानव    को|


संज्ञा  समाज ने दी जिसको है लेबर की||


उत्थान        विकास       जब      होगा |


उस  अंतिम   पंक्ति   के   मानव   का ||


तब    अभियान    सफल    पूर्ण   होगा|


फिर     लेबर    दिवस    मनाने     का||



_ सन्तोष कुमार तिवारी




शुक्रवार, 1 मई 2020

Tribute to Irfan & Rishi श्रद्धांजली -इरफ़ान और ऋषि


                                       श्रद्धांजली -इरफ़ान और ऋषि 



जिंदगी     को    यू     जीना     सिखा    गये    दोनों|


ये      ऋषि    और   इरफ़ान   समझा   गये    दोनों||


थे   बेमिसाल     जिन्दादिल      इन्सान     ये    दोनों|


अदाकारी       हुनर     की     खान    थे    ये    दोनों|


अपनी   अलग   शख्सियत   की   पहचान   थे दोनों|


कर  दिया   नाम   खुद   का  अमर  विश्व  पटल  पर|


मेहनतकशी      क्या     चीज    है   दोनों   बता   गये|


करो      धैर्य    धारण    हर   प्रतिकूल   परिस्थिति में|


ये      पाठ      सहज     सबको     दोनों    पढा   गये|



_ सन्तोष कुमार तिवारी

शिव वंदना

 शिव वंदना  शिवम्   शिवे   हो  रूद्र   तुम   स्यवं      प्रबल     प्रबुद्ध   तुम , जटा      में      गंग     साजती  हैं       ...