मंगलवार, 26 मई 2020

विद्यालय की यादें

विद्यालय की यादें 


रुखा    सूखा  ,जो   मिलता   था | 
खा   कर   स्कूल ,  को  जाते थे || 

घर  से  हम ,टाट  की   पट्टी को | 
लेकर     विद्यालय       जाते   थे || 

पत्ते   तिनके , कागज़  के टुकड़े | 
मिलजुलकर ,  सभी   उठाते  थे || 

कुछ इस   तरह से ,साफ सफाई | 
निज   विद्यालय   ,की   करते  थे || 

क्योकि    अपने   ,विद्यालय   को | 
हम   विद्या मंदिर ,ही समझते थे | 

गुरुजन  सहपाठी, मित्र सभी को| 
आदर   सप्रेम , नित्   करते   थे || 

गुरुजन को ,प्यास लगे   यदि तो | 
हम   पानी ,उन्हें   पिलाते      थे || 

होता था निज गौरव का एहसास | 
इस   सेवा   भाव , को  करने में || 

आशीष   सदा  , मिलता  हमको | 
इस    पुण्य कर्म ,को करने में  || 

गुरु   शिष्य    के  , बीच    सदा | 
आदर   की   , भावना  होती थी || 

हम   छात्र   देते  ,सम्मान  सदा  | 
स्नेह        गुरु    जी   , देते     थे || 

जो   शिक्षा   सबक, सिखाया था | 
वह   आज   ,स्मरण   है  हमको || 

कुछ   बातें   आज, समझ आती | 
जो  नहीं   उस समय ,थे  समझे || 

गर    कभी  , दंड   वह    देते  थे | 
हम   घर   पर  ,नहीं    बताते थे ||  

अटूट विस्वाशअभिभावक रखते | 
इस लिए   झिझक, हम  जाते थे || 

कुछ   इस  प्रकार, से गलती को |
अपने   हम     सदा, छुपाते    थे || 

निज   मन  में  प्रण , फिर लेते थे | 
और  फिर   न ,उसे  दोहराते थे ||  

है आज भी अंकित ,अंतर्मन पर | 
सारे    गुरुजन  , की   सब यादें || 

है   शीश   सदा ,झुक जाते जब | 
आते   है  याद ,निस्वार्थ     वादे || 

पर आज   शिक्षा, को देख देख | 
मन  में यह  प्रश्न,   उमड़ते   है || 

अब   न   तो ,शिक्षक     वैसे है | 
न   शिष्य ही , वैसे   मिलते  है || 

पर   हमें सदा ,  अपनी परंपरा | 
को       जीवित   , रखना     है || 

गुरुशिष्यके उस,अमिट  स्नेह को | 
फिर      जिन्दा  ,     करना     है || 
फिर     जिन्दा   , करना     है ..... 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 






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