विद्यालय की यादें
रुखा सूखा ,जो मिलता था |
खा कर स्कूल , को जाते थे ||
घर से हम ,टाट की पट्टी को |
लेकर विद्यालय जाते थे ||
पत्ते तिनके , कागज़ के टुकड़े |
मिलजुलकर , सभी उठाते थे ||
कुछ इस तरह से ,साफ सफाई |
निज विद्यालय ,की करते थे ||
क्योकि अपने ,विद्यालय को |
हम विद्या मंदिर ,ही समझते थे |
गुरुजन सहपाठी, मित्र सभी को|
आदर सप्रेम , नित् करते थे ||
गुरुजन को ,प्यास लगे यदि तो |
हम पानी ,उन्हें पिलाते थे ||
होता था निज गौरव का एहसास |
इस सेवा भाव , को करने में ||
आशीष सदा , मिलता हमको |
इस पुण्य कर्म ,को करने में ||
गुरु शिष्य के , बीच सदा |
आदर की , भावना होती थी ||
हम छात्र देते ,सम्मान सदा |
स्नेह गुरु जी , देते थे ||
जो शिक्षा सबक, सिखाया था |
वह आज ,स्मरण है हमको ||
कुछ बातें आज, समझ आती |
जो नहीं उस समय ,थे समझे ||
गर कभी , दंड वह देते थे |
हम घर पर ,नहीं बताते थे ||
अटूट विस्वाशअभिभावक रखते |
इस लिए झिझक, हम जाते थे ||
कुछ इस प्रकार, से गलती को |
अपने हम सदा, छुपाते थे ||
निज मन में प्रण , फिर लेते थे |
और फिर न ,उसे दोहराते थे ||
है आज भी अंकित ,अंतर्मन पर |
सारे गुरुजन , की सब यादें ||
है शीश सदा ,झुक जाते जब |
आते है याद ,निस्वार्थ वादे ||
पर आज शिक्षा, को देख देख |
मन में यह प्रश्न, उमड़ते है ||
अब न तो ,शिक्षक वैसे है |
न शिष्य ही , वैसे मिलते है ||
पर हमें सदा , अपनी परंपरा |
को जीवित , रखना है ||
गुरुशिष्यके उस,अमिट स्नेह को |
फिर जिन्दा , करना है ||
फिर जिन्दा , करना है .....
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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