विश्व भूख दिवस
भूख अभिशाप है ,निर्धनों के लिए |
शोषितो बंचितो , निर्बलो के लिए ||
सब दुःखो का ये कारण, है उनके लिए |
हा नहीं है निवारण, कुछ उनके लिए ||
भूख के लिए ,दर -दर भटकता रहा |
शहर दर शहर खुद ,को घिसता रहा ||
क्षुब्ध पीड़ा लिए , मन से मरता रहा |
आत्मा जीवन को, अपने कोसता रहा ||
क्षुधा पूर्ति को जग से, वो जूझता रहा |
वो गिरता मचलता , सिसकता रहा ||
रक्त अश्रु बने , उसको पीता रहा |
खुद की हस्ती , बनाता मिटाता रहा ||
दाना -दाना वो, दिन भर जुटाता रहा |
निज उदर अग्नि को, वह बुझाता रहा ||
जिसके लिए जरूरी ,कुछ न संसार में |
एक रोटी है सब कुछ ,इस ब्रमांड में ||
और कुछ भी अधिक, ना समझाता है वो |
एक रोटी के लिए, प्रयत्न करता है वो ||
आओ हम भी करे, इस अनुभव को सहन |
छोड़े थोड़ा सा हिस्सा, करे भूख को वहन ||
तो करो कुछ न्योछावर, अन्न उनके लिए |
देगी आत्मा दुआ , इस भले के लिए ||
खिल उठेगा जब भी , उनका निज अंतर्मन |
फिर करेंगे जगत को, वो पुनि -पुनि नमन ||
होगा विश्वाश गहरा , जीवन जगत पर |
चल उठेंगे ख़ुशी से, वे निर्माण के पथ पर ||
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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