कर्म पर कविता
हाँ ब्रह्म देव , ही सृजन करें |
करें विष्णु , प्रभु पालन ||
शिवा शिवम् , संहार करें |
सृष्टि को , रखते कायम ||
करते त्रिदेव , नित् अपना कर्म |
संसार के ,वे संचालक ||
विद्या देती , है सरस्वती |
लक्ष्मी ऐश्वर्य , प्रदायक ||
करें उदर , क्षुधा की पूर्ति |
अन्नपूर्णा माँ , है सहायक ||
जल जीवन ,सबको देने का |
वरुण देव का, है अधिकार ||
मानते जगत , के जीव जंतु |
सब उनका, ये उपकार ||
सब अन्य देव , गण भी करते |
अपने कर्तव्य , निर्वहन ||
फिर हम तो , है मनुष्य मात्र |
क्यों घबराता , अंतर्मन ||
निज कर्म को , धर्म मानकर |
आगे को , बढ़ते रहिये ||
भगवान प्रभु ,का सदा भजन |
अन्तरमन में ,भजते रहिये ||
बस सत्य यही ,सिद्धांत जगत का |
इसी का सदा, करो तुम ध्यान ||
नित्य ,निरंतर ,शुभ कर्म करो |
बस इसी में ,छुपा विश्वकल्याण ||
बस इसी में, छुपा विश्वकल्याण ||
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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