शिव वंदना
शिवम् शिवे हो रूद्र तुम
स्यवं प्रबल प्रबुद्ध तुम ,
जटा में गंग साजती
हैं भाल चंद्र सोहते,
लिए गरल हो कंठ में
गले भुजंग धारते ,
ललाट पे भी नेत्र हैं
त्रिनेत्र धारी हो बने,
त्रिपुण्ड भस्म माथे पर
शरीर भस्म भूषरित ,
त्रिशूल शूल हाथ में
डमरू भी है बंधे हुए ,
मृगछाल का आसन सुघर
नंदी भी है खड़े हुए ,
सब देव हाथ जोड़कर
सेवा में है भरे हुए ,
अब सृस्टि के विनाश को
बचा लो तुम परम प्रभु ,
हम दीन हीन नर नारी
करते सभी विनती भारी ,
सब मनुज जीव है दुःखी
संतृप्त तृप्त हो सभी ,
करो सुदूर कष्ट को
कर दो सभी को फिर सुखी,
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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