रविवार, 28 जून 2020

पिता

पिता 

पिता    ब्रह्मा   है   विष्णु  ,जन्म   पोषण    का   पुजारी  है | 
सींचता    खून    पसीने   से   ,कर्मो    का   अधिकारी   है || 
चमन  के फूल    जैसा  ,रखता   सदा   महफ़ूज वो  सबसे | 
करता    हर    प्रहर   ,संतति   की   निगरानी    निगेबानी || 

पिता   पुलकित   है   पावन   प्रेम का   परिपूर्ण   पालक है | 
वह   अपने     संतति    ,कल्यान   का   सर्वथा सहायक है || 
छिपा   कर   प्रेम   को    अपने   ,जहन  के एकांत कोने में | 
चाहता     है   क्षेम     कुशलता ,धड़कता  दिल जो सीने में || 

पिता    करता   निवारण   ,सहज   एक - एक  कारण   का | 
दिशा   देता    हमेशा    हर   ,भटकती    भूल  हो साधारण || 
मिटाता  हर  विषाद अवसाद  , स्वयं  करके  धैर्य को धारण | 
रखता   है   सदा    सलामत   ,सुख   शांति  का   दे   दर्पण || 

पिता   के   होने   का   अहसास   ,ही   काफी  है    बच्चे  को |  
 उसी       एहसास   से    निश्चिन्त  , ग़म  के     हर  बिछौने  से || 
दुःख   और    त्रास   चिंता   ,न   कभी   आते    है   सपने    में | 
पिता के आशीष    का   प्रभाव  ,स्वयं   सक्षम   है   अपने  में || 

 पिता  का   मन   सदृश   नारियल   ,कोमल   कठोर  है  होता | 
 त्याग   और    प्रेम    करता    ,धीर    संयम   को    नहीं खोता || 
निरंतर   कर्म   को   अपने   ,फ़र्ज़    समझ     है   वो    करता | 
लिए   विश्वाश   आश    उम्मीद , मन   से  वो     चला   करता || 

छुपा      कर      पीर   को अंदर  ,चमकते   दिव्य   है   लोचन | 
अमित   अगणित    है    करता   पार    ,झंझावात  का   मोचन || 
गिरे   चाहे    दुखो    के   अनगिनत   ,पत्थर    है    उसके  सर | 
निकलता   उफ़  न   मुख   से ,फर्क   न   पड़ता     जहन  पर  || 

पिता   की   आत्मा   का   बास  रहता ,सदा  उसके ही  बच्चे में | 
संतति     की     तड़प   का    ज्ञान ,होता   उसको    अच्छे    से || 
हाथ   हर   वक्त    बढ़ा    कर , है   सदा    उसको     संभालता | 
तनिक      न    आंच    आये   ,हर    उपाय   करके      टालता || 

चाहता    नाम      से    जाना   जाऊ  , मै   अपने    बच्चो      के | 
करे    चर्चा    सभी   हर    वक्त    ,उनके   अच्छे    कर्मो    की || 
होगा   मन    गर्व    से   प्रमुदित  , प्रफ़ुल्लित   तब  कही जाकर | 
सफल        होगी      तभी    ,मनोकामना     मेरे    सकर्मो     की|| 

पिता   का   आदर   और    सम्मान, हम    सकबो   भी  है करना | 
निरंतर    खुशिया    प्रेम    गर्व   ,का   कारण    है    अब   बनना || 
कर      दे    खुद   को    न्योछावर    हम ,सदा उनके ही चरणों में | 
नाम    इज्जत    को    सदा    उनके    ,अब    रोशन   हमें  करना || 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 












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