पिता
पिता ब्रह्मा है विष्णु ,जन्म पोषण का पुजारी है |
सींचता खून पसीने से ,कर्मो का अधिकारी है ||
चमन के फूल जैसा ,रखता सदा महफ़ूज वो सबसे |
करता हर प्रहर ,संतति की निगरानी निगेबानी ||
पिता पुलकित है पावन प्रेम का परिपूर्ण पालक है |
वह अपने संतति ,कल्यान का सर्वथा सहायक है ||
छिपा कर प्रेम को अपने ,जहन के एकांत कोने में |
चाहता है क्षेम कुशलता ,धड़कता दिल जो सीने में ||
पिता करता निवारण ,सहज एक - एक कारण का |
दिशा देता हमेशा हर ,भटकती भूल हो साधारण ||
मिटाता हर विषाद अवसाद , स्वयं करके धैर्य को धारण |
रखता है सदा सलामत ,सुख शांति का दे दर्पण ||
पिता के होने का अहसास ,ही काफी है बच्चे को |
उसी एहसास से निश्चिन्त , ग़म के हर बिछौने से ||
दुःख और त्रास चिंता ,न कभी आते है सपने में |
पिता के आशीष का प्रभाव ,स्वयं सक्षम है अपने में ||
पिता का मन सदृश नारियल ,कोमल कठोर है होता |
त्याग और प्रेम करता ,धीर संयम को नहीं खोता ||
निरंतर कर्म को अपने ,फ़र्ज़ समझ है वो करता |
लिए विश्वाश आश उम्मीद , मन से वो चला करता ||
छुपा कर पीर को अंदर ,चमकते दिव्य है लोचन |
अमित अगणित है करता पार ,झंझावात का मोचन ||
गिरे चाहे दुखो के अनगिनत ,पत्थर है उसके सर |
निकलता उफ़ न मुख से ,फर्क न पड़ता जहन पर ||
पिता की आत्मा का बास रहता ,सदा उसके ही बच्चे में |
संतति की तड़प का ज्ञान ,होता उसको अच्छे से ||
हाथ हर वक्त बढ़ा कर , है सदा उसको संभालता |
तनिक न आंच आये ,हर उपाय करके टालता ||
चाहता नाम से जाना जाऊ , मै अपने बच्चो के |
करे चर्चा सभी हर वक्त ,उनके अच्छे कर्मो की ||
होगा मन गर्व से प्रमुदित , प्रफ़ुल्लित तब कही जाकर |
सफल होगी तभी ,मनोकामना मेरे सकर्मो की||
पिता का आदर और सम्मान, हम सकबो भी है करना |
निरंतर खुशिया प्रेम गर्व ,का कारण है अब बनना ||
कर दे खुद को न्योछावर हम ,सदा उनके ही चरणों में |
नाम इज्जत को सदा उनके ,अब रोशन हमें करना ||
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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