बृक्ष एवं पर्यावरण
कर्तव्य तू , निभाए जा |
कर्त्तव्य तू , निभाए जा ||
लगे जो फल ,तेरे पे तो |
किलाये जा , खिलाये जा ||
ना भेद गोरे, काले का |
ना चोर ना , हत्यारे का ||
समझ हो या, हो ना समझ |
अमीर हो या, हो गरीब ||
तू छाव में, बिठाये जा |
तू छाव में, बिठाये जा ||
कर्तव्य तू , निभाए जा |
कर्त्तव्य तू ,निभाए जा ||
देते ठंडक ,शीतल सबको |
दे प्राण वायु ,हर जन -जन को ||
जानते है, लोग महत्व तेरा |
फिर भी संयम, ना रखते है ||
दिन प्रतिदिन ,काटते जाते है |
नुकशान तुम्हे ,सब करते है ||
तुम कट जाते ,हो हसकर |
उफ़ तलक ,नहीं करते हो ||
खुबिया तुम्हारी जब सब जन |
अन्यत्र कही , ना पाएंगे ||
रोयेंगे सभी सिर , धुन धुन कर |
कर आत्म ग्लानि, पछतायेंगे||
रोयेंगे सभी सिर , धुन धुन कर |
कर आत्म ग्लानि, पछतायेंगे||
फिर याद तुम्हे, कर कर के |
चिंतन व मनन ,कर पाएंगे ||
फिर स्वयं कह, उठेंगे मुख से |
कि तूने तो निभाया पग पग पर ||
हमने है, गवाया सुअवसर |
हा हमने ही ,गवाया सुअवसर ||
फिर मानव ,भी कह उठेंगे |
हम भी कर्त्वय निभाएंगे ||
बृक्ष लता , सब बन उपवन |
सबको सम्बृद्ध बनायेगे||
धरती में ,बीजा रोपड़ कर|
नवजीवन बृक्ष उगाएंगे ||
कर अपनी ,धरती को हरा भरा|
नव प्राण ,वायु दे जायेंगे ||
आने वाली ,पीढ़ी को भी |
जागृत चेतन ,करना है ||
पेड़ पौधो ,पर्यावरण को |
मन से सिंचित करना है ||
मन से सिंचित करना है.....
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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