गुरुवार, 4 जून 2020

बृक्ष एवं पर्यावरण


बृक्ष एवं पर्यावरण 




कर्तव्य       तू ,   निभाए जा | 
कर्त्तव्य     तू ,  निभाए  जा || 
लगे   जो   फल  ,तेरे  पे तो | 
किलाये   जा , खिलाये  जा || 

ना   भेद    गोरे, काले   का | 
ना  चोर    ना  , हत्यारे का || 
समझ  हो या, हो ना समझ | 
अमीर    हो   या, हो गरीब || 

तू   छाव   में,   बिठाये  जा | 
तू   छाव   में, बिठाये  जा || 
कर्तव्य    तू   , निभाए   जा | 
कर्त्तव्य    तू   ,निभाए   जा || 

देते  ठंडक ,शीतल सबको | 
दे प्राण वायु ,हर जन -जन  को || 
जानते    है, लोग  महत्व तेरा | 
फिर  भी संयम, ना रखते है || 

दिन प्रतिदिन ,काटते जाते है | 
नुकशान   तुम्हे ,सब करते है || 
तुम    कट  जाते ,हो  हसकर | 
उफ़  तलक ,नहीं  करते  हो ||  

खुबिया तुम्हारी जब सब जन  | 
अन्यत्र    कही    , ना     पाएंगे ||  
रोयेंगे सभी सिर , धुन धुन कर |  
कर   आत्म   ग्लानि, पछतायेंगे||   

फिर   याद  तुम्हे, कर  कर के |  
चिंतन      व   मनन ,कर  पाएंगे ||

फिर स्वयं  कह, उठेंगे मुख से | 
कि तूने तो निभाया पग पग पर || 
हमने        है,  गवाया   सुअवसर |
हा हमने ही ,गवाया  सुअवसर ||   

फिर   मानव   ,भी   कह उठेंगे | 
हम   भी    कर्त्वय    निभाएंगे ||   
बृक्ष    लता ,  सब   बन उपवन | 
सबको        सम्बृद्ध    बनायेगे||   
धरती     में   ,बीजा  रोपड़ कर|  
नवजीवन    बृक्ष         उगाएंगे ||  
कर अपनी ,धरती को हरा भरा|  
नव    प्राण    ,वायु     दे जायेंगे ||  

आने    वाली    ,पीढ़ी    को  भी | 
जागृत      चेतन    ,करना    है || 
पेड़   पौधो    ,पर्यावरण     को | 
मन    से    सिंचित    करना है || 
मन  से  सिंचित   करना   है..... 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 




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