विनायकी
हुआ मन क्लांत , क्रूरता के कपटी कर्मो से |
जगत के स्वार्थ ,कलुषित कृत्य कुंठित कृमिओं से ||
मन है आहत ,गहन गंभीर गरिष्ठ तर्कों से |
मिटा दू आज हस्ती , दुष्ट दम्भी दर दरिंदो की ||
जिन्होंने माँ सहित ,गर्भित गठित बच्चे को मारा |
जिसने मानव मानवता का ,हनन कर डाला ||
बिगाड़ा क्या तुम्हारा था ,उस निर्दोष प्राणी ने |
जिसे धोखे से बिस्फोटक , खिलाकर निर्मम तूने मारा ||
सुकून पायेगा न तू भी , अब किसी भी जीवन में |
लिए अभिशप्त श्रापित मुख ,तू किसको अब दिखायेगा ||
गर , खुदा परमात्मा जिसको तू मानता होगा |
माफ़ तुझको कभी ना ,वो भी अब कर पायेगा ||
तुम्हारे इस कुत्सित कलंकित नीच कर्मो का |
मूल्य अब सिर्फ एक तू , ही नहीं चुकाएगा ||
किया है काम निन्दित , इस कदर तूने|
अब संपूर्ण मानव जाती से ,भरोसा ही उठ जायेगा |
जानवर तो सदा प्रकृति के , नियमो पर चलता है |
सदा मनुष्य ही उन नियमो को ,काटता कुचलता है ||
चुरा कर भूमि कानन ,उनके नैसर्गिक ठिकानो को |
हमेशा भोजन भ्रमण स्वतंत्रता ,उनकी हड़पता है ||
नर और जानवर के बीच, फिर से विश्वास बढ़ाना होगा ||
उससे पहले मानव समाज को, दुष्टो को दण्डित करना होगा |
शायद प्रकृति जानवर जंगल , फिर माफ़ मनुज को कर दे |
अपने श्रापो को वापस कर , फिर से मानव को वर दे ||
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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