सरस्वती वंदना
धवल वस्त्र धारणी||
स्वेत कमल आसन |
पर सदा तुम विराजती ||
शुभ्र हंस वाहन |
कर माला सवारती ||
वीणा वाद्य कर सोहे |
राग सुर प्रदायिनी ||
सकल देव करते |
नित् वन्दना तुम्हारी ||
सदा हो सहाय तुम |
सभी को हो उबारती ||
ज्ञान बुद्धि सत्य न्याय |
सर्वदा तुम्हारे पास ||
जिह्वा पर बैठ सदा |
बोध तुम कराती हो ||
दे कर के ज्ञान दान |
अज्ञानी को उबारती हो ||
कालिदास को महाकवि |
कालिदास बनाती हो ||
मुझ अबोध प्राणी को |
दे कर आशीष ज्ञान ||
बुद्धि को सवार दो |
जीवन सुधार दो ||
करता माँ विनती |
मै तुमसे बार -बार ||
इस जटिल जगत से |
मुझको उबार दो ||
मात हे सरवस्ती। .......
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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