मजदूर दिवस
लेते सब जन्म मनुष्य बनकर|
फिर लेबर नौकर कहते सब||
खड़ा करता वह शीश महल|
जिसको अपना घर कहते सब||
निज खून पसीना बहा - बहा |
वह चुन - चुन महल बनाता है||
फिर भी असहाय आश्रय विहीन|
वह गृह बंचित कहलाता है||
आश्रय घर रोटी कपड़ा हो|
इन शोषित बंचित मानव को|
संज्ञा समाज ने दी जिसको है लेबर की||
उत्थान विकास जब होगा |
उस अंतिम पंक्ति के मानव का ||
तब अभियान सफल पूर्ण होगा|
फिर लेबर दिवस मनाने का||
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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