शहीद
आज मन बहुत खिन्न है |
अंतर्मन छिन्न - भिन्न है ||
अश्रुपूरित नयन ,आत्म उद्विगना है ||
सुन वीर सपूतों ,के बलिदान को |
क्रोध पीणा उमड़ता , हृदयस्थान में ||
रोज सुनता ,देखता जवानो का शव |
मन ,रुधिर में कौधती है बिजली सी अब ||
अब सम्हाले नहीं है सँभलता ये मन |
कुछ करो ऐसा हो जाये इनका पतन ||
हा , पतन इन आतंकियों का हो समूल |
अब इन्हे कर दो , जड़ से निर्मूल ||
खेल इनका सदा के लिए बंद हो |
फिर न सैनिक , परिवार निर्बंश हो ||
बस गुजारिश है ,इतनी सी सरकार से |
रोक लो सर्वथा , इस अनाचार को ||
हम समर्पित खड़े , देश के संग में |
गर जरूरत पड़ी , उतरेंगे जंग में ||
बस आवाज देनी , है तुमको एक|
दौड़े आएंगे वीर , अनगिनत अनेक ||
पल में नामो निशा, को मिटा देंगे |
जड़ से आतंकवाद , को निपटा देंगे ||
जड़ से आतंकवाद , को निपटा देंगे ||
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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