भ्रूण हत्या पर कविता
ओं माँ रखती है भ्रूण उदर में ,पूरे नौ महीने तक |
साहस ,उत्साह ,उमंग रखती वह ,पूरे नौ महीने तक ||
गर्भस्त शिशु है कौन ,ये किंचित उर न सोचती है |
बस एक सिवा उसके ,पूरा परिवार शशंकित है ||
मन में सबके ही प्रश्न सदा ,इस बात के उठते रहते है |
शिशु है ये पुत्र या पुत्री ,सब सदा सोचते रहते है ||
किस भॉँति पता हो जाये इसका ,हर जुगत लगाते रहते है |
इस घोर पाप के कर्म तनिक ,ना करने से वो डरते है ||
पर प्रश्न यहाँ ये उठता है ,क्यों पता लगाने की जल्दी है |
शायद तैयारी हत्या की ,यदि निकल जाये की पुत्री है ||
अब बंद करो ये खेल ,कोख़ में ताका झांकी का |
जब माँ को किंचित फर्क नहीं,तो होने दो सफल फिर होनी का ||
जो कर्म हैं भाग्यविधाता का ,तू क्यों कर उसमे विघ्न करें |
अन्याय अनीति अधर्म पाप ,क्यों अपने ऊपर वहन करे ||
शिशु अपना स्वयं भाग्य लेकर ,इस पृथ्वी पर है आता |
लड़का हो या हो लड़की क्यों ,व्यर्थ में अश्रु बहाता ||
लड़की है आदिशक्ति रूप ,क्यों उससे द्वेष तू रखता है |
पुत्री साक्षात् है लक्ष्मी रूप ,फिर क्यों तू मन से डरता है ||
फिर क्यों तू मन से डरता है ||
_ सन्तोष कुमार तिवारी
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