मंगलवार, 30 जून 2020

शिव वंदना

 शिव वंदना 

शिवम्   शिवे   हो  रूद्र   तुम 
 स्यवं      प्रबल     प्रबुद्ध   तुम ,
जटा      में      गंग     साजती 
हैं       भाल      चंद्र     सोहते, 
लिए    गरल    हो    कंठ   में 
गले          भुजंग         धारते ,
ललाट         पे    भी     नेत्र हैं 
त्रिनेत्र       धारी      हो     बने, 
त्रिपुण्ड    भस्म    माथे     पर 
शरीर          भस्म     भूषरित ,
त्रिशूल       शूल    हाथ      में 
डमरू     भी   है    बंधे    हुए ,
मृगछाल    का   आसन सुघर 
नंदी    भी     है    खड़े     हुए ,
सब   देव     हाथ     जोड़कर 
सेवा      में     है    भरे     हुए ,
 अब   सृस्टि     के  विनाश को 
बचा   लो   तुम    परम    प्रभु ,
हम   दीन    हीन   नर   नारी 
करते  सभी   विनती     भारी ,
सब   मनुज   जीव   है  दुःखी 
संतृप्त       तृप्त     हो    सभी ,
करो     सुदूर      कष्ट     को 
कर  दो सभी को फिर सुखी,

_ सन्तोष कुमार तिवारी  

रविवार, 28 जून 2020

पिता

पिता 

पिता    ब्रह्मा   है   विष्णु  ,जन्म   पोषण    का   पुजारी  है | 
सींचता    खून    पसीने   से   ,कर्मो    का   अधिकारी   है || 
चमन  के फूल    जैसा  ,रखता   सदा   महफ़ूज वो  सबसे | 
करता    हर    प्रहर   ,संतति   की   निगरानी    निगेबानी || 

पिता   पुलकित   है   पावन   प्रेम का   परिपूर्ण   पालक है | 
वह   अपने     संतति    ,कल्यान   का   सर्वथा सहायक है || 
छिपा   कर   प्रेम   को    अपने   ,जहन  के एकांत कोने में | 
चाहता     है   क्षेम     कुशलता ,धड़कता  दिल जो सीने में || 

पिता    करता   निवारण   ,सहज   एक - एक  कारण   का | 
दिशा   देता    हमेशा    हर   ,भटकती    भूल  हो साधारण || 
मिटाता  हर  विषाद अवसाद  , स्वयं  करके  धैर्य को धारण | 
रखता   है   सदा    सलामत   ,सुख   शांति  का   दे   दर्पण || 

पिता   के   होने   का   अहसास   ,ही   काफी  है    बच्चे  को |  
 उसी       एहसास   से    निश्चिन्त  , ग़म  के     हर  बिछौने  से || 
दुःख   और    त्रास   चिंता   ,न   कभी   आते    है   सपने    में | 
पिता के आशीष    का   प्रभाव  ,स्वयं   सक्षम   है   अपने  में || 

 पिता  का   मन   सदृश   नारियल   ,कोमल   कठोर  है  होता | 
 त्याग   और    प्रेम    करता    ,धीर    संयम   को    नहीं खोता || 
निरंतर   कर्म   को   अपने   ,फ़र्ज़    समझ     है   वो    करता | 
लिए   विश्वाश   आश    उम्मीद , मन   से  वो     चला   करता || 

छुपा      कर      पीर   को अंदर  ,चमकते   दिव्य   है   लोचन | 
अमित   अगणित    है    करता   पार    ,झंझावात  का   मोचन || 
गिरे   चाहे    दुखो    के   अनगिनत   ,पत्थर    है    उसके  सर | 
निकलता   उफ़  न   मुख   से ,फर्क   न   पड़ता     जहन  पर  || 

पिता   की   आत्मा   का   बास  रहता ,सदा  उसके ही  बच्चे में | 
संतति     की     तड़प   का    ज्ञान ,होता   उसको    अच्छे    से || 
हाथ   हर   वक्त    बढ़ा    कर , है   सदा    उसको     संभालता | 
तनिक      न    आंच    आये   ,हर    उपाय   करके      टालता || 

चाहता    नाम      से    जाना   जाऊ  , मै   अपने    बच्चो      के | 
करे    चर्चा    सभी   हर    वक्त    ,उनके   अच्छे    कर्मो    की || 
होगा   मन    गर्व    से   प्रमुदित  , प्रफ़ुल्लित   तब  कही जाकर | 
सफल        होगी      तभी    ,मनोकामना     मेरे    सकर्मो     की|| 

पिता   का   आदर   और    सम्मान, हम    सकबो   भी  है करना | 
निरंतर    खुशिया    प्रेम    गर्व   ,का   कारण    है    अब   बनना || 
कर      दे    खुद   को    न्योछावर    हम ,सदा उनके ही चरणों में | 
नाम    इज्जत    को    सदा    उनके    ,अब    रोशन   हमें  करना || 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 












शनिवार, 20 जून 2020

खुदखुशी

खुदखुशी 

आज   चिंतित    दुःखी , मन  ये  उद्विगना   है | 
क्या  मूल्य  जीवन  का, कमतर यू संदिग्घ है || 

खुदखुशी   हो   गयी   क्यों  , बड़ी  आज कल | 
जिंदगी  छुद्र   रुढ़   ,क्यों   गिरी   धरती   पर ||  

क्यों   टूटते     सिसकते   ,तड़पते   ये    सपने | 
सिसकियों   में   सिमटते   ,मचलते   ये सपने || 

मुस्कराहट     का     चेहरा     ,मुखौटा    लिए | 
घूमते     मिथ्या     खुशियाँ     ,प्रसन्ता     लिए || 

पीछे  इन  नकली   भ्रमित,  करती  मुस्कान में | 
क्या   छिपा  है    कष्ट  ,दुःख  के  तरणताल में || 

क्या   जरुरी   नहीं  मन   ग्रंथि ,खोले अब सभी | 
दुःख  रुस्वाई खुलकर ,मन की बोले अब सभी || 

दूर       हो   जाएगी   ,मन   की पीर शिथिलता  | 
हो   न   किंचित  उपेक्षित , कर  ये दृढ़ फ़ैसला || 

क्यों  न   खुलकर  कहते, अपने   मन की व्यथा | 
किस   तरफ   चल  पड़ा , अब युवाजन सर्वथा || 

आत्म      हत्या        न  ,कोई      समाधान     है | 
इस      अमूल्य    ,जीवन    का   अपमान     है || 

मुक्ति   बिलकुल    नहीं  , प्राप्त   होती   इससे   | 
क्रुद्ध   भगवान    प्रकृति  , होती   है बस इससे || 

मिलता      सम्मान      न  , लोक   परलोक   में | 
बिलखते    रहते     परिवार   , बस   शोक    में || 

आत्मा   जब   देखती    ,होगी     इस    दृश्य  को | 
कोसती   ग्लानि    करती   , अपने  औचित्य को || 

हाय      ऐसा      कदम   , क्यों       मैंने     लिया | 
क्रोध    कुंठा    की  अग्नि में, प्राण आहुति दिया || 

क्या    मिला    मुझको   ,ऐसा      कृत्य     करके | 
जीत    जाता     शायद    ,लड़ता    नित्य  उठके || 

मन   अवस्था    को   अपने  , बदल    सकता  था | 
इस   खुदखुशी    से    शायद ,मै  बच  सकता था || 

सिर्फ  अपने    आत्मबल  , को   जगाने   का    था | 
इस    अमूल्य    जीवन   ,को    बचाने    का    था || 

ठीक   हो    नहीं    सकता  , ऐसा   कुछ  तो  न था |
प्रेम   जीवन    के    प्रति   ,बस    जगाने   का   था || 

राह   पर    अपने    खुद   के  , लौट   आने का था | 
आत्म     हत्या   से  , खुद   को    बचाने   का    था || 

 जीवन     में       बहुत    कुछ  , अभी   पाने   को  था | 
नव     सृजन      कर   ,जीवन    चलाने   का     था || 

आत्म    हत्या   से    खुद    को   बचाने   का था.....  

_ सन्तोष कुमार तिवारी 

सोमवार, 15 जून 2020

जसुमति के वो नन्द दुलारे






जसुमति        के    वो   नन्द   दुलारे 
है   वो    ब्रज   के   आँख  के   तारे  
जसुमति     के    वो    नन्द    दुलारे 

मोर    पंख   सिर      मुकुट   विराजे 
अधरन        पर     मुरली   वो   सजे 
जसुमति     के     वो     नन्द   दुलारे 

वक्र   कटि     तट     क्षुद्र     घंटिका 
छुन     -   छुन      राग         निकारे  
जसुमति       के    वो   नन्द    दुलारे 

पूतना       बका      अघासुर     मारे 
तृणावर्त          राक्षस             संहारे 
कालिय      मर्दन        करि      डारे 
जसुमति     के     वो    नन्द     दुलारे

इन्द्र      अहम्     चूर    करि     डारे 
उनके    क्रोध     से   ब्रज  को उबारे 
गोवर्धन               गिरि              धारे 
जसुमति       के      वो     नन्द दुलारे

गोकुल    छोड़     मथुरा    को पधारे 
कंस       चाणूर       आदि      संहारे 
पिता   माता   को   मुक्त  करि  डारे 
राजगद्दी    पर    उग्रसेन  को  बैठारे 
मथुरा    नगरी  को  हर्षित करि डारे 
जसुमति      के      वो     नन्द   दुलारे

पांडव   आदि    सब    मित्र     तिहारे 
द्रोपदी    लाज के   तुम         रखवारे 
महाभारत    में    सारथि     बन  आये 
गीता    ज्ञान    अर्जुन    को      सुनाये 
पापियों        दुष्टो       का नाश कराये 
धर्म       बढ़ाये         अधर्म     मिटाये 
पुनि         निज धाम वैकुण्ठ     पधारे 
जसुमति     के      वो      नन्द    दुलारे

_ सन्तोष कुमार तिवारी 

मंगलवार, 9 जून 2020

सीता राम बोलो

सीता राम बोलो 




सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया 
सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया 
दसरथ   इनके   पिता   थे   भाई 
कौशल्या   थी   मइया 
सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया 
सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया 

बन   को    चले   है   पितु    की   आज्ञा 
संग    में   लखन   सीता   मइया 
सीता   राम    बोलो   ,भजन   करो   भइया
सीता   राम    बोलो   ,भजन   करो   भइया

कानन   में   सब   राक्षस   मारे 
खर   दूषण   त्रिसरा   संहारे 
नवधा   भक्ति   सहज    दे   डारे 
धन्य   हुई    सबरी   मैया 
सीता    राम   बोलो   ,भजन   करो  भइया
सीता  राम    बोलो   ,भजन   करो   भइया

सुग्रीवहि   संग   मित्रता   करि   डारे 
मारि   बाली   तिन्ह   कष्ट   निवारे  
खोजन   लगे     सीता   मइया 
सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया
सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया

हनुमत   लंका   में   पग   धारे 
लिए   सिया   सुधि   प्राण   उबारे 
रावण   पुत्र   अक्षय   संहारे 
लंका   जारे    हनुमत   भइया 
सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया
सीता   राम    बोलो   ,भजन   करो  भइया

सैन्य    सहित   सागर   तट  आये 
रामेश्वर   तीरथ   बनवाये 
सेतु   बनाये    नील नल  भैया 
सीता    राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया
सीता    राम   बोलो   ,भजन    करो  भइया

युद्ध   भयंकर   तुम   कर   डारे 
मेघनाद   आदि   को   मारे 
रावण   कुम्भकरण    संहारे  
राज   विभीषण   को   दे   डारे 
मुक्त   कराये   सीता   मइया 
सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया
सीता   राम   बोलो   ,भजन   करो   भइया

_ सन्तोष कुमार  तिवारी 






विनायकी


विनायकी 

हुआ    मन   क्लांत   , क्रूरता    के   कपटी     कर्मो         से | 
 जगत       के   स्वार्थ   ,कलुषित   कृत्य   कुंठित   कृमिओं से || 

मन    है    आहत     ,गहन    गंभीर      गरिष्ठ     तर्कों     से  | 
मिटा   दू     आज   हस्ती   , दुष्ट    दम्भी   दर    दरिंदो   की || 

जिन्होंने    माँ    सहित    ,गर्भित    गठित   बच्चे   को     मारा | 
जिसने     मानव     मानवता     का     ,हनन     कर     डाला || 

बिगाड़ा      क्या     तुम्हारा     था ,उस      निर्दोष      प्राणी ने | 
जिसे   धोखे    से   बिस्फोटक , खिलाकर   निर्मम   तूने मारा || 

सुकून    पायेगा    न    तू   भी    , अब  किसी   भी    जीवन में | 
लिए अभिशप्त   श्रापित     मुख ,तू किसको   अब दिखायेगा || 

गर ,      खुदा       परमात्मा    जिसको    तू    मानता     होगा | 
माफ़    तुझको        कभी    ना ,वो    भी अब   कर    पायेगा || 

तुम्हारे    इस    कुत्सित    कलंकित       नीच     कर्मो      का   | 
मूल्य     अब     सिर्फ       एक  तू  ,  ही     नहीं         चुकाएगा || 

किया           है      काम        निन्दित ,     इस      कदर     तूने|  
अब  संपूर्ण    मानव     जाती     से ,भरोसा    ही    उठ जायेगा | 

जानवर    तो    सदा    प्रकृति    के ,  नियमो   पर    चलता है | 
सदा    मनुष्य     ही    उन    नियमो  को ,काटता कुचलता है ||  

चुरा    कर    भूमि     कानन ,उनके     नैसर्गिक  ठिकानो को | 
हमेशा    भोजन     भ्रमण     स्वतंत्रता    ,उनकी    हड़पता है || 

नर    और  जानवर के बीच, फिर  से  विश्वास   बढ़ाना   होगा || 
उससे  पहले मानव  समाज को, दुष्टो को दण्डित करना होगा | 

शायद   प्रकृति   जानवर    जंगल , फिर माफ़ मनुज को कर दे | 
अपने    श्रापो     को     वापस    कर , फिर  से  मानव को वर दे || 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 

गुरुवार, 4 जून 2020

बृक्ष एवं पर्यावरण


बृक्ष एवं पर्यावरण 




कर्तव्य       तू ,   निभाए जा | 
कर्त्तव्य     तू ,  निभाए  जा || 
लगे   जो   फल  ,तेरे  पे तो | 
किलाये   जा , खिलाये  जा || 

ना   भेद    गोरे, काले   का | 
ना  चोर    ना  , हत्यारे का || 
समझ  हो या, हो ना समझ | 
अमीर    हो   या, हो गरीब || 

तू   छाव   में,   बिठाये  जा | 
तू   छाव   में, बिठाये  जा || 
कर्तव्य    तू   , निभाए   जा | 
कर्त्तव्य    तू   ,निभाए   जा || 

देते  ठंडक ,शीतल सबको | 
दे प्राण वायु ,हर जन -जन  को || 
जानते    है, लोग  महत्व तेरा | 
फिर  भी संयम, ना रखते है || 

दिन प्रतिदिन ,काटते जाते है | 
नुकशान   तुम्हे ,सब करते है || 
तुम    कट  जाते ,हो  हसकर | 
उफ़  तलक ,नहीं  करते  हो ||  

खुबिया तुम्हारी जब सब जन  | 
अन्यत्र    कही    , ना     पाएंगे ||  
रोयेंगे सभी सिर , धुन धुन कर |  
कर   आत्म   ग्लानि, पछतायेंगे||   

फिर   याद  तुम्हे, कर  कर के |  
चिंतन      व   मनन ,कर  पाएंगे ||

फिर स्वयं  कह, उठेंगे मुख से | 
कि तूने तो निभाया पग पग पर || 
हमने        है,  गवाया   सुअवसर |
हा हमने ही ,गवाया  सुअवसर ||   

फिर   मानव   ,भी   कह उठेंगे | 
हम   भी    कर्त्वय    निभाएंगे ||   
बृक्ष    लता ,  सब   बन उपवन | 
सबको        सम्बृद्ध    बनायेगे||   
धरती     में   ,बीजा  रोपड़ कर|  
नवजीवन    बृक्ष         उगाएंगे ||  
कर अपनी ,धरती को हरा भरा|  
नव    प्राण    ,वायु     दे जायेंगे ||  

आने    वाली    ,पीढ़ी    को  भी | 
जागृत      चेतन    ,करना    है || 
पेड़   पौधो    ,पर्यावरण     को | 
मन    से    सिंचित    करना है || 
मन  से  सिंचित   करना   है..... 

_ सन्तोष कुमार तिवारी 




शिव वंदना

 शिव वंदना  शिवम्   शिवे   हो  रूद्र   तुम   स्यवं      प्रबल     प्रबुद्ध   तुम , जटा      में      गंग     साजती  हैं       ...